कुत्तोंके प्रत्युपकार
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Jul 14, 2015 ·
2m 27s
एक बार दो कुत्ते गंगा स्नानार्थ साथ-साथ रवाना हुए। एक दिन किसी नगर में भूखसे व्याकुल हो कर दोनों अलग-अलग भोजनकी तलाश में गये। पहला श्वान एक ग़रीब ब्राह्मण के घर में गया वहाँ रखी हुई थाली में से रोटी खाने लगा। ब्राह्मण ने देख कर कुछ भी नहीं किया। दूसरा कुत्ता एक सेठ के घर घुस गया ,जहाँ पर बिना कुछ नुक्सान किये ही लाठीसे उसे अधमरा कर दिया गया। मिलने पर पहले कुत्ता इसका कारण पूछा , तब दुसरे कुत्ता ने बोला :-
बिना बिगार मार भुगताई। मैं तो करवत लेसूँ भाई।।
करवत लेह अवतरऊँ जाई। वान्ये के जनमूँ दुखदाई। ।
यह सुनकर पहले कुत्ता भी कहा :-
ब्राह्मण सत्त कहा कूँ तोकूँ। दीन्हो नहीं कछु दुःख मोकूँ।।
मैं भी करवत लेसूँ भाई। ब्राह्मण गृहे अवतरऊँ जाई। ।
पुत्र होय सुख भुगताऊँ। फलदायक ऎसे मन चाऊँ।
ऐसा निश्चय करके दोनोंने काशी में करवत ली। दूसरा कुत्ता तो सेठके यहाँ उत्पन्न हुआ और जन्मसे ही सदा रोगी बनकर विविध प्रकारसे खर्च कराया। बड़ा होने पर , वह कभी बालोंको खींचता , कभी -कभी पत्थर मारता , तोड़-फोड़ करता। अंत में उसने एक दिन लाठीसे सेठ का मस्तक ही फोड़ डाला। इस प्रकार उसने अपना बदला लिया।
पहला कुत्ता उसी ब्राह्मण के वहाँ पैदा हुआ। तत पश्चात ब्राह्मणको बड़ा लाभ होने लगा। कई लोग पर ऋण था , पर दे नहीं रहे थे , बिन माँगे स्वयं ही रुपये ला दिये। कई नये यज्ञमान हुए। पुत्रने भी पिता के आज्ञानुवर्ती बन कर , तथा धन कमाकर उसे अनेक प्रकार से सुख दिया। इस कुत्ता भी अपने प्रति किये हुए उपकार , दूसरा जन्म लेकर चुकाया।
बिना बिगार मार भुगताई। मैं तो करवत लेसूँ भाई।।
करवत लेह अवतरऊँ जाई। वान्ये के जनमूँ दुखदाई। ।
यह सुनकर पहले कुत्ता भी कहा :-
ब्राह्मण सत्त कहा कूँ तोकूँ। दीन्हो नहीं कछु दुःख मोकूँ।।
मैं भी करवत लेसूँ भाई। ब्राह्मण गृहे अवतरऊँ जाई। ।
पुत्र होय सुख भुगताऊँ। फलदायक ऎसे मन चाऊँ।
ऐसा निश्चय करके दोनोंने काशी में करवत ली। दूसरा कुत्ता तो सेठके यहाँ उत्पन्न हुआ और जन्मसे ही सदा रोगी बनकर विविध प्रकारसे खर्च कराया। बड़ा होने पर , वह कभी बालोंको खींचता , कभी -कभी पत्थर मारता , तोड़-फोड़ करता। अंत में उसने एक दिन लाठीसे सेठ का मस्तक ही फोड़ डाला। इस प्रकार उसने अपना बदला लिया।
पहला कुत्ता उसी ब्राह्मण के वहाँ पैदा हुआ। तत पश्चात ब्राह्मणको बड़ा लाभ होने लगा। कई लोग पर ऋण था , पर दे नहीं रहे थे , बिन माँगे स्वयं ही रुपये ला दिये। कई नये यज्ञमान हुए। पुत्रने भी पिता के आज्ञानुवर्ती बन कर , तथा धन कमाकर उसे अनेक प्रकार से सुख दिया। इस कुत्ता भी अपने प्रति किये हुए उपकार , दूसरा जन्म लेकर चुकाया।
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Author | Manoj Kurup |
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